
रायपुर,न्यूज़ धमाका :-छत्तीसगढ़ जंगल के मामले में देश में चौथे स्थान पर है, लेकिन गिनती के बाघ हमारे लिए चिंता का विषय बनते जा रहा है। जैव विविधता के संरक्षण के लिए जल, जंगल, जमीन को लेकर आंदोलन किए जा रहे हैं, लेकिन निराशाजनक स्थिति है कि ना तो जिम्मेदार जागरूक हो पा रहे हैं और ना ही लोग।
एक तरफ हसदेव अरण्य को बचाने को लेकर आंदोलन जारी है तो दूसरी तरफ प्रदेश में बाघों की संख्या 46 से घटकर 18 रह गई है। अब इसमें भी आंकड़े स्पष्ट नहीं है कि प्रदेश में बाघों की संख्या 18 हैं या 19।देश के कई राज्यों में जहां बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है, तो दूसरी तरफ प्रदेश में कम हो रही है। तमाम प्रयासों के बावजूद बाघों को प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व और अभयारण्य में रहने का अनुकूल वातावरण नहीं मिल पा रहा है।
अन्य जीव-जंतुओं को लेकर भी यही स्थिति हैं। राजकीय पशु वन भैंसा भी अब दिखाई नहीं देते। राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना की आवाज कानों में सुनाई नहीं पड़ती। राजकीय पशु-पक्षियों को बचाने के लिए भी प्रदेश में कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया गया।
बस्तर में हैं जैव विविधताजैव विविधता के जानकार और वन्य प्रेमियों का कहना है कि बस्तर क्षेत्र अभी भी वन संपदा और जैव विविधता से परिपूर्ण हैं। यहां वन क्षेत्र और जीव-जंतुओं को बचाने के लिए आम लोगों के साथ ही जिम्मेदारों को आगे आना चाहिए।
अभी भी बस्तर क्षेत्र में कई ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियां हैं, जिस पर बड़ी बीमारियों को लेकर रिसर्च जारी है। बस्तर के जंगलों में जीव-जंतुओं को अभी भी बेहतर वातावरण मिल रहा है।
हसदेव अरण्य को बचाने की अपील
सरगुजा और कोरबा जिले से सटे हुए हसदेव अरण्य को लेकर छत्तीसगढ़ में रोजाना धरना-प्रदर्शन और ज्ञापन जारी है। आकंड़ों पर गौर करें तो हसदेव अरण्य में परसाकोल ब्लाक में 90 से 95 हजार पेड़ कट सकते हैं। कोल ब्लाक आवंटन की प्रक्रिया में पेड़ों के कटने को लेकर सामाजिक, राजनीतिक संगठनों के साथ ही पर्यावरण प्रेमियों में लड़ाई छेड़ दी है।