जबलपुर,न्यूज़ धमाका :-वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया सर्वाधिक सर्व सिद्धि योग वाली तिथि है। इस दिन किए जाने वाले सभी अच्छे कर्मों का अच्छा परिणाम प्राप्त होता है और उसका लाभांश कभी नष्ट नहीं होता, इसलिए इसे अक्षय कहा जाता है। इसी दिन वसंत ऋतु का समापन और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है।
रोहिणी नक्षत्र और शोभन योग की वजह से इस दिन मंगल रोहिणी योग बन रहा है। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में, शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में, शनि अपनी स्वराशि कुंभ में और बृहस्पति अपनी स्वराशि मीन में मौजूद होंगे। मंगलवार को तृतीया तिथि होने से सर्वसिद्धि योग बन रहा है।
ऐसे करें पूजन
ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि इस दिन दो कलश की स्थापना उत्तम माना जाता है। एक कलश में जल भरकर पंच पल्लव डालकर उसके बाद उसके ऊपर किसी पात्र में अनाज रखकर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और इस दौरान कलश स्थापना मंत्र का जाप करें। शुद्ध मन से सफेद कमल के फूल या सफेद गुलाब के फूल से पूजा-अर्चना करें। सफेद फूल के उपलब्ध ना होने पर पीले फूलों से भी पूजा की जा सकती है। धूप , अगरबत्ती, चंदन इत्यादि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। प्रसाद में जौ या गेहूं का सत्तू आदि का चढ़ावा चढ़ाना चाहिए।
विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त
अक्षय तृतीया पर अबूझ मुहूर्त होता है यानी इस दिन बिना मुहूर्त देखे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य किए जाते हैं और वाहन, सोने आदि की खरीदारी की जा सकती है। इस दिन नए कार्य की शुरुआत करने पर शुभ फल प्राप्त होता है।
तीन राजयोग बन रहे
गुरु के मीन राशि में होने से हंस राजयोग, शुक्र के अपनी उच्च राशि में होने से मालव्य राजयोग और शनि के अपने घर में विद्यमान होने से शश राजयोग बन रहा है। इस बार अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र व शोभन योग में भी है। यह तिथि पुण्यदायी होती है। तिथियों का घटना बढ़ना क्षय होना क्रमश: चंद्रमास और सौरमास की गणना के अनुसार तय है, लेकिन अक्षय तृतीया सर्वदा अक्षय रहती है।