रायपुर,न्यूज़ धमाका :-छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के दूसरे चरण में गुरुवार को बस्तर संभाग के धुर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में पहुंचेंगे। सीएम भूपेश ने ट्वीट कर बताया कि आज बीजापुर विधानसभा (जिला-बीजापुर) में आपसे भेंट-मुलाकात के लिए आ रहा हूं। इस दौरान बीजापुर के ग्राम, ग्राम आवापल्ली में आपके साथ, सिर्फ आपकी बात होगी।
इससे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के दूसरे चरण में बुधवार को बस्तर संभाग के धुर नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के कोंटा क्षेत्र में पहुंचे। यहां जनचौपाल में पूर्व नक्सल कमांडर और आत्मसमर्पण के बाद इंस्पेक्टर बने मड़कम मुदराज ने मुख्यमंत्री के सामने नक्सल प्रभावित इलाकों की बदलाव की तस्वीर रखी।
उन्होंने बताया कि यहां कैंप स्थापित कर, सड़कें बनाकर, स्कूलों का जीर्णद्धाकर आपने विकास की धारा बहा दी है। अब यहां लोगों में नक्सलियों का खौफ नहीं बल्कि आगे बढ़ने की चाहत है। इस दौरान सुकमा के लोगों ने छिंद के पत्ते से बना गुलदस्ता देकर परंपरागत तरीके से मुख्यमंत्री का स्वागत किया।
दरअसल, मड़कम बदलते छत्तीसगढ़ का एक नायाब उदाहरण हैं। कभी नक्सली रहे मड़कम के बच्चे आज अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ रहे हैं। जनचौपाल में उन्होंने अपनी भी कहानी सुनाई।
अपने प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री बघेल ने छिंदगढ़, कोंटा और सुकमा में लोगों की समस्याओं को सुना। अभियान की शुरुआत कोंटा के राम लिंगेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ की। यहां शिवलिंग पर अभिषेक किया।
कोंटा में मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि यह केवल भेंट-मुलाकात नहीं है, यह एक-दूसरे से कहने-सुनने की एक बड़ी परंपरा का छोटा सा हिस्सा है। सरकार आपको सुनने और आपकी समस्याओं का समाधान करने आपके घर तक खुद चलकर आई है। मुख्यमंत्री ने अस्पताल में बुजुर्गों का हाल-चाल जानने के बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 30 बिस्तर की सुविधा बढ़ाने की घोषणा की।
उन्होंने छिंदगढ़ में मुसरिया माता मंदिर में भी पूजा-अर्चना की। आदिवासियों के आस्था के केंद्र बिंदु 100 देवगुड़ियों के पांच करोड़ की लागत से जीर्णोद्धार की घोषण्ाा की। उन्होंने 12 गांवों के 291 वन आश्रितों को वन अधिकार मान्यता पत्र प्रदान किया। इसके बाद उनकी मुलाकात मड़कम मुदराज से हुई।
सीएम ने मिलाया हाथ, बजवाई ताली
जनचौपाल में मड़कम ने मुख्यमंत्री से कहा कि मैं आपसे हाथ मिलाना चाहता हूं। इस पर बघेल ने आत्मीयता से मड़कम के कंधे पर हाथ रखा और हाथ भी मिलाया। मड़कम के हाथों में बंदूक पहले भी थी और आज भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले ग्रामीणों में उनके प्रति खौफ था और आज नक्सली इनके नाम से कांपते हैं।
मड़कम ने बताया कि वे राह भटककर नक्सली संगठन में शामिल हो गए थे। अपने ही भाई-बंधुओं का खून बहाने से आत्मग्लानि के चलते नींद नहीं आती थी। फिर एक दिन आत्मसमर्पण करने की ठान ली।