
रायपुर,न्यूज़ धमाका :-प्रदेश में आयुर्वेद फार्मेसी, छत्तीसगढ़ सरकार और स्वास्थ्य विभाग की घोर उपेक्षा का शिकार हो गई है। स्थिति ये है कि आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए जिन 150 तरह का कच्चे माल की आवश्यकता होती है, लगातार मांग के बाद भी उसे उपलब्ध कराने के लिए विभाग ने विचार तक नहीं किया। साल-2013 के बाद से ही ऐसी स्थिति है। ऐसी स्थिति तब है जब एलोपैथी दवाइयों के साइड इफेक्ट को देखते हुए लोग बड़ी संख्या में आयुर्वेदिक दवाइयों की ओर अग्रसर हो रहे हैं। ऐसे में निजी आयुर्वेदिक कंपनियों ने छत्तीसगढ़ में एक हजार करोड़ से अधिक का व्यापार खड़ा कर लिया और सरकारी अधिकारी केवल, देखते हैं…, जानकारी जुटाएंगे…, जैसी बातें कहने में ही व्यस्त हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा गठित आयुर्वेद फार्मेसी में कभी 157 तरह की दवाइयां बनती थी। ये दवाइयां यहां के 637 औषधालय में बंटती थी। यहां से लाखों रोगियों को कम मूल्य पर ये दवाइयां मिल जाती थी। समय के साथ सरकार और स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकता बदल गई। फार्मेसी को दवाइयां बनाने के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करनी बंद कर दी गई। लालफीताशाही का सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि कच्चा माल न मिलने पर स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी स्वयं को कहीं से जिम्मेदार नहीं मान रहे हैं। इनके पास एक लाइन का उत्तर है कि कच्चे माल की सप्लाई का काम छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कारपोरेशन (सीजीएमएससी) करता है। अब वह ही सप्लाई नहीं कर रहा है तो क्या किया जा सकता है? इधर, सीजीएमएससी के अधिकारी-पता करता हूं, जैसा उत्तर दे रहे हैं। अधिकारी बताते हैं कि दवाइयों के लिये कच्चे माल की समस्या व आयुष अस्पतालों की अनदेखी की जानकारी विभाग की संचालक डा. प्रियंका शुक्ला को कई बार दी जा चुकी है। उप संचालक डा. केशर पात्र ने कहा कि सीजीएमएससी से कच्चा माल नहीं मिलने से दवाओं का निर्माण नहीं हो पा रहा है।
देखिये, कैसे की जा रही है उपेक्षा…
अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2013 आयुर्वेद फार्मेसी के लिए कच्चा माल संचालनालय स्तर पर खरीदी की जाती थी। वर्ष 2014 ये इसका जिम्मा सीजीएमएससी दे दी गई। इसके बाद से मांग के अनुरूप दवाओं के लिए कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है। वहीं, आयुर्वेद औषधालय में वर्षों पुरानी मशीनें व कम मैनपावर भी बड़ी समस्या है। आयुर्वेद फार्मेसी में कुल 64 पद स्वीकृत हैं। इसमें से 28 पद खाली पड़े हैं।