बालोद,न्यूज़ धमाका :- छत्तीसगढ़ में ग्रीन कमांडो के नाम से प्रसिद्ध बालोद जिले के दल्लीराजहरा निवासी 47 वर्षीय वीरेंद्र सिंह बीते दिनों झरना बांध से लगे तालाब की जलकुंभी को कफन की तरह ओढ़कर एक बार फिर चर्चा में आए हैं। उनकी इस पहल का उद्देश्य प्राकृतिक जलस्रोतों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना था। करीब 20 वर्षों से पर्यावरण जागरूकता के लिए काम करने वाले वीरेंद्र ने इसे जीवन का लक्ष्य बना लिया है। अब तक 10 हजार से अधिक पौधों का रोपण कर चुके वीरेंद्र कहते हैं कि प्रकृति हमें बहुत कुछ देती है, ऐसे में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि उसका संरक्षण और संवर्द्धन करें।
- बच्चों की टीम बनाकर चलाते हैं अभियान, बड़े-बुजुर्ग स्वस्फूर्त होते हैं शामिल
एक निजी कंपनी में सामान्य सी नौकरी करने वाले वीरेंद्र अपनी कमाई के तीन हजार रुपये हर माह अपने इस अभियान पर खर्च करते हैं। दल्लीराजहरा में इन्होंने 25 बच्चों की टीम बना रखी है, जिन्हें साथ लेकर हर शनिवार सफाई और पौधरोपण अभियान चलाते हैं। कुछ बड़े-बुजुर्ग भी स्वस्फूर्त इसमें शामिल होते हैं। वीरेंद्र कहते हैं कि बच्चों में पर्यावरण के प्रेम पैदा करना बहुत जरूरी है, क्योंकि यही भविष्य के नागरिक हैं।
एमकाम, एमए (अर्थशास्त्र) तक शिक्षित वीरेंद्र अब तक 35 से ज्यादा तालाबों की सफाई और पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए कई साइकिल यात्राएं आदि कर चुके हैं। इसके चलते उन्हें केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की ओर से वर्ष 2020 में वाटर हीरो सम्मान, मार्च 2022 में मैग्सेसे पुरस्कार विजेता जलपुरुष राजेंद्र सिंह के हाथों जल प्रहरी पुरस्कार, 2005 में तत्कालीन राज्यपाल केएम सेठ द्वारा तरु भूषण पुरस्कार, 2011 में राज्य सरकार की ओर से छत्तीसगढ़ जल स्टार पुरस्कार समेत कई अन्य पुरस्कार मिल चुके हैं।
मेरा जन्म वर्ष 1975 में दल्लीराजहरा में एक सामान्य किसान परिवार में हुआ। बचपन से मां को पेड़-पौधों की पूरे समर्पण भाव से सेवा करते देखता था। पर्यावरण के प्रति प्रेम का बीज यहीं से पड़ा। बड़ा हुआ तो देखा कि गांव के लोग चूल्हा जलाने के लिए हरे-भरे पेड़ तक काट डाल रहे हैं। इससे बड़ी तकलीफ हुई। उन्हें समझाना शुरू किया। यह भी कहा कि जलाऊ लकड़ी जरूरी है, तो सूखी लकड़ियां जुटाओ।
पौधरोपण कर नए पेड़ तैयार करो। इस दौरान लगा कि सिर्फ इतने से कुछ नहीं होगा। इसमें खुद जुटना होगा। इसके बाद से पर्यावरण व प्राकृतिक जलस्रोतों को बचाने के लिए अभियान शुरू किया, जो आज तक जारी है और जीवन की आखिरी सांस तक जारी रहेगा। 2013 में शादी हुई तो दहेज में 11 फलदार पौधे लिए। बेटी का नाम प्रकृति रखा है। परिचितों के घरों के बच्चों को उनके जन्मदिन पर पौधा भेंट करता हूं।
2004 में वार्ड-16 में लगाए 250 पौधे आज पेड़ बन चुके हैं। इन पेड़ों का जन्मदिन हर साल बच्चों के साथ मिलकर मनाता हूं। लोगों को बिजली-पानी का उपयोग सोच-समझकर करने को प्रेरित करता हूं। शरीर पर पेंटिंग बनाकर भी जागरूकता लाने की कोशिश होती है। एड्स जागरूकता, साक्षरता, मतदाता जागरूकता, सर्वशिक्षा, पल्स पोलियो, वन्यजीवों के संरक्षण जैसे अभियान से भी जुड़े हुए हैं।