राजस्थान न्यूज़ धमाका // कुछ दिन पहले राजस्थान के दौसा जिले के लालसौट सरकारी अस्पताल में काम करने वालीं डॉक्टर अर्चना शर्मा ने आत्महत्या कर ली थी। दरअसल, उनके पास एक गर्भवती महिला डिलीवरी के लिए पहुंची थी लेकिन ज्यादा ब्लीडिंग होने की वजह से उसकी मौत हो गई। इस मामले में डॉक्टर पर हत्या का मामला दर्ज हो गया था। मरीज के घरवालों से परेशान होकर उन्होंने खुदकुशी कर ली। उनके पास से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ जिसमें लिखा था कि मैंने किसी को नहीं मारा। पोस्ट पार्टम हेमरेज (पीपीएच) एक कॉम्लिकेशन है। डॉक्टरों को प्रताड़ित करना बंद करो।
डॉक्टर और मरीज के बीच संवाद जरूरी
दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर माला श्रीवास्तव ने वुमन भास्कर को बताया कि एक डॉक्टर और मरीज के बीच संवाद होना जरूरी है। कई बार मरीज हाई रिस्क पर होते हैं लेकिन वह अपनी बीमारी को छुपा देते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आजकल ज्यादातर मरीजों ने मेडिकल इंश्योरेंस करवाया हुआ होता है। क्लेम मिलने में दिक्कत न हो, इसलिए वह शुगर, बीपी जैसी समस्याओं को बताते नहीं हैं। इससे दिक्कत आ सकती है।
कई बार अंतिम समय में बदलना पड़ता है निर्णय
डॉक्टर माला श्रीवास्तव ने कहा कि हमारे काम में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती। हम मरीज की मेडिकल हिस्ट्री देखने के बाद ही इलाज शुरू करते हैं। हर इंसान का शरीर अलग है लेकिन दवा तो एक ही है। वह सबके शरीर में अलग-अलग तरीके से रिएक्ट करती है।
प्रेग्नेंसी भी हर महिला की अलग-अलग होती है। हमें पेशेंट की कंडीशन को देखकर कई बार 1 घंटे में ही निर्णय बदलना पड़ता है। जैसे कई महिलाओं की कंडीशन नॉर्मल डिलीवरी की होती है लेकिन दिक्कत हो तो हमें ऑपरेशन करना पड़ता है। ऐसे में कई बार मरीज के घरवाले गुस्सा हो जाते हैं। उन्हें समझने की जरूरत है कि डरा-धमकाकर इलाज नहीं होता।
लिमिटेड संसाधनों में देते हैं अपना बेस्ट
कश्मीर स्थित चरारे शरीफ उप जिला अस्पताल, बडगाम की गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर मसरत ने बताया कि स्त्री रोग विशेषज्ञ कोई आसान काम नहीं है। इसमें काफी रिस्क और खतरा है। आजकल लोगों में सब्र बिल्कुल खत्म हो चुका है। उन्हें लगता है कि डॉक्टर उनके हिसाब से इलाज करें। जैसे आजकल अधिकतर मरीज नॉर्मल की बजाए सिजेरियन बच्चा करना चाहते हैं क्योंकि इसमें ज्यादा समय नहीं लगता।
हमारे पास जितनी फैसिलिटी हैं हम उसमें अपना बेस्ट देने की कोशिश करते हैं। कई बार डिलीवरी करने में बहुत दिक्कत होती हैं। ऐसे में हम मरीज के घरवालों को साफ-साफ दिक्कत का बता देते हैं। कई बार लोग समझते और कई बार नहीं। अगर हमारे पास मरीज के हिसाब से सुविधा नहीं होती तो हम उसे दूसरे हॉस्पिटल में रेफर कर देते हैं।
कई बार मरीज को घरवाले ही नजरअंदाज कर देते हैं
प्रेग्नेंट होने से लेकर डिलीवरी तक की प्रक्रिया बेहद मुश्किल होती है। यह सफर जितना मरीज के लिए मुश्किल होता है उतना ही डॉक्टर के लिए भी। लेकिन कई बार मरीज के घरवाले ही महिला को नजरअंदाज कर देते हैं। जैसे कई घरों में गर्भवती महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं या उन्हें सही डाइट नहीं दी जाती। वहीं, अगर किसी को पेट में दर्द हो तो घरवाले महिला को जल्दी से डॉक्टर के पास नहीं लाते। ऐसे में प्रेग्नेंसी में दिक्कत आ सकती है।
पोस्ट पार्टम हेमरेज (पीपीएच) से अधिकतर मौतें
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 45,000 गर्भवती की मौत हो जाती है। हर घंटे में 5 महिलाएं बच्चे को जन्म देते समय आखिरी सांस लेती हैं। अधिकतर मौतें पोस्ट पार्टम हेमरेज (पीपीएच) के कारण होते हैं। इसमें डिलीवरी के बाद बहुत अधिक खून बहता है। जिससे गर्भवती की मौत हो सकती है।