भिलाई न्यूज़ धमाका /// रविवार को गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने जेएस फॉर्म धौराभाठा, धमधा में आयोजित किसान संगोष्ठी में किसानों को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा कि कृतिक खेती रासायनिक खेती और आर्गेनिक खेती दोनों से भिन्न हैं। जो नियम जंगल में काम करते हैं, वहीं नियम खेत में भी काम करना चाहिए।
इसे प्राकृतिक खेती कहते हैं। जहर मुक्त और कम लागत वाली इस खेती से आर्थिक, आध्यात्मिक, मानसिक लाभ के साथ पुण्य भी मिलता है। इस खेती से देशी गाय बच जाएंगी। बीमारी से लोगों को मुक्ति मिलेगी। किसानो की आय बढ़ेगी, समृद्धि- उन्नति का रास्ता भी बनेगा। आसपास के गांवों से आए किसानों को प्राकृति खेती के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि हरियाणा के कुरूक्षेत्र में वे गुरुकुल चलाने के साथ 200 एकड़ में रासायनिक खेती करते थे, लेकिन एक दिन जब उनका मजदूर खेत में रसायन का छिड़काव करते हुए बेहोश हुआ। तब उन्हें अहसास हुआ कि रसायन के सिर्फ छिड़काव का इतना भंयकर असर होता है तो हम रसायन से उत्पादित अनाज लोगों को बच्चों को खिलाकर बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं। फिर उन्होंने रसायन छोड़ा और कृषि वैज्ञानिकों से सलाह तो उन्होंने आर्गेनिक खेती के बारे में बताया। लेकिन इसमें उत्पादन कम होता और खर्च अधिक थे।
इसलिए उन्होंने प्राकृति खेती की ओर कदम बढ़ाया। जंगल में पौधों को पानी कौन देता है। कैसे पौधे बढ़ते है और फलते हैं। इसी पर काम किया और आज वे सफल हैं। 200 एकड़ में खेती कर रहे हैं। प्रति एकड़ औसतन 32 क्विटल धान उत्पादन हुआ है और प्रति एकड़ लागत मात्र 1000 रुपए थी। जबकि रसायनिक खेती में औसतन उत्पादन 28 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ है पर खर्च प्रति एकड़ 10 से 12 हजार रुपए है। यही नहीं उन्होंने बताया कि वे प्राकृति खेती के लिए किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। गुजरात में 2 लाख किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वहां सरकार गाय पालने वाले किसानों को एक गाय पालने पर 30 रुपए प्रति दिन चारा का खर्चा देती है। हिमांचल में डेढ़ लाख किसान प्राकृति खेती कर रहे हैं। राज्यपाल राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने छत्तीसगढ़ के किसानों को भी प्राकृति खेती करने के लिए प्रेरित किया।
संगोष्ठी को गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने तकरीबन डेढ़ घंटे तक संबोधित किया। इस दौरान किसानों के सवालों के जवाब भी दिए। कई किसानों ने अपनी शंकाओं को दूर किया। राजपाल ने कहा कि हरियाणा में इस समय रसायनिक खाद डालने की होड़ मची है। किसान अधिक से अधिक रसायनिक खाद डालकर आलू और अन्य फसल पैदा करते हैं।
इससे यह हो रहा है कि इस फसल को खाने से लोगों को कैंसर और अन्य घातक बीमारियां हो रही हैं। फसल भी अधिक दिन तक नहीं टिक रही है। इसलिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना चाहिए इससे कम लागत में अच्छी और अधिक पैदावार होती है। जेएस फॉर्म के वजीर सिंह और अनिल शर्मा की थपथपाई पीठ