
भोपाल,न्यूज़ धमाका :- नगरीय निकायों के महापौर, परिषद और पालिका अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष हों या अप्रत्यक्ष, इसे लेकर भाजपा में ही अलग-अलग सुर सुनाई दे रहे हैं। विधायक संगठन पर दबाव बना रहे हैं कि चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से ही कराए जाएं, यानी पार्षद के जरिये महापौर या अध्यक्ष चुने जाएं।
इस विरोध की कई वजह बताई जा रही हैं। गौरतलब है कि मप्र में प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए ही महापौर और अध्यक्षों का चुनाव होता था लेकिन 2019 में कमल नाथ सरकार के कार्यकाल में इसे बदल कर अप्रत्यक्ष निर्वाचन का नियम बनाया गया था।
पार्टी सूत्रों के अनुसार विधायकों को लगता है कि सीधे चुनाव में निर्वाचित होकर नगर पालिका अध्यक्ष और महापौर विधानसभा टिकट के लिए दावेदारी करने लगता है।
दूसरी वजह जहां नगर निगम हैं, वहां महापौर और विधायक के बीच बनती नहीं है। विधायक महापौर पर दबाव नहीं बना पाते हैं। विधायकों ने एकजुटता बनाकर पार्टी के सामने तर्क दिया है कि अप्रत्यक्ष चुनाव पार्टी की सेहत के हिसाब से अच्छा है। इससे पार्षद स्तर के कार्यकर्ता को भी ऊपर आने का मौका मिलता है।
विधायकों के समर्थन में मंत्रियों ने भी अपना सुर मिला लिया है। यही कारण है कि निकाय के प्रत्यक्ष निर्वाचन का अध्यादेश धरा का धरा रह गया है।
फिलहाल निकायों में चुने हुए जनप्रतिनिधि न होने के कारण विधायक-मंत्री ही इस संस्थाओं को चला रहे हैं। प्रशासक होने के कारण अधिकारी विधायकों की बात अनसुनी नहीं करते हैं। विधायकों का मानना है कि अप्रत्यक्ष चुनाव से चुना अध्यक्ष कमजोर रहेगा तो उनका हस्तक्षेप चलता रहेगा।