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आई एन एस 2000 किमी दूर से आ रही मिसाइल को भी ट्रैक कर लेगा यह युद्धपोत, जानें भारत को इसकी जरूरत क्यों?

भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की कोशिशें जारी हैं। इसी के मद्देनजर नौसेना को महज सात साल के अंदर देश में बना पहला सैटेलाइट और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग जहाज आईएनएस ध्रुव मिलने जा रहा है। विशाखापत्तनम में मौजूद इस 17 हजार टन वजनी ट्रैकिंग पोत के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना की ताकत में जबरदस्त इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। दरअसल, मौजूदा समय में दुनिया के सिर्फ चार देशों के पास ही इस तकनीक वाला नौसैन्य मिसाइल सिस्टम मौजूद है।
क्या है आईएनएस ध्रुव का इतिहास?
आईएनएस ध्रुव का निर्माण भारत के हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है। इसके निर्माण की शुरुआत के दौरान इसका नाम वीसी-11184 दिया गया था। इस शिप के केंद्रीय ढांचे का निर्माण 30 जून 2014 को मोदी सरकार के आने के बाद शुरू किया गया था। इसे इतना गोपनीय रखा गया कि सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) की निगरानी में ही इसे बनाने का काम पूरा हुआ।

इस शिप के निर्माण के बाद इसके ट्रायल की जानकारी को भी अधिकतर गुप्त ही रखा गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईएनएस ध्रुव का हार्बर ट्रायल जुलाई 2018 में शुरू हुआ। 2018 के अंत तक इसका समुद्री ट्रायल भी शुरू हो गया। बताया जाता है कि तकरीबन दो साल तक पूरी जांच के बाद यह पोत अक्टूबर 2020 में गुपचुप तरीके से नौसेना तक पहुंचा दिया गया। अब सितंबर 2021 में इसे आधिकारिक तौर पर नौसेना में शामिल किया जाएगा। इस शिप के पूरे निर्माण की लागत का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसे बनाने में तब लगभग 1500 करोड़ रुपए का खर्च अनुमानित था।
भारत को क्यों पड़ी ट्रैकिंग पोत की जरूरत?
मौजूदा समय में भारत के दो पड़ोसियों (चीन और पाकिस्तान) के पास परमाणु हथियार हैं। चीन पिछले काफी समय से समुद्री सीमा के जरिए भारत पर निगरानी रखने की कोशिश कर रहा है। नौसैन्य निगरानी के मामले में फिलहाल चीन सबसे आगे है। उसके पास भारत के मुकाबले ट्रैकिंग जहाजों का बड़ा बेड़ा है। चिंता की बात यह है कि चीन बीते काफी समय से अपने समुद्री क्षेत्र से निगरानी करने वाले जहाजों को हिंद महासागर की ओर भेज रहा है।
मिसाइलों की ट्रैकिंग के लिए कैसे काम करेगा आईएनएस ध्रुव?
चीन और पाकिस्तान दोनों के पास ही बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक मौजूद है। हालांकि, जमीनी और हवाई सीमा पर भारत के पास आधुनिक रडार तकनीक मौजूद है। इससे युद्ध के समय इन दोनों देशों से आती मिसाइल-रॉकेट को ट्रैक कर उन्हें नष्ट किया जा सकता है। साथ ही भारत को जल्द ही रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी मिलने वाला है, जो इन दोनों देशों की सीमा पर तैनात किया जाना है। यानी भारत की जमीनी सीमा किसी मिसाइल या एयरक्राफ्ट के हमले से सुरक्षित हो जाएगी।

इस बीच, बड़ा खतरा यह है कि जमीनी जंग के बीच चीन और पाकिस्तान समुद्री रास्ते का इस्तेमाल करते हुए भारत पर नौसैनिक शिप से बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकते हैं। चूंकि, बैलिस्टिक मिसाइल की रेंज ज्यादा होती है और बड़े समुद्री इलाके में रडार के लिए कोई तय जगह नहीं हो सकती, ऐसे में काम आते हैं नौसेना के ट्रैकिंग और सर्विलांस शिप। इन ट्रैकिंग शिप पर आधुनिक सर्विलांस रडार लगे होते हैं, जो कि एंटीना के जरिए सीधे सैटेलाइट से जुड़े होते हैं। ये सैटेलाइट ही दूरी से आ रही मिसाइल का पता लगाकर शिप में मौजूद रडार तक जानकारी भेजते हैं। इससे बैलिस्टिक मिसाइलों को आसानी से ट्रैक करने के बाद नष्ट किया जा सकता है। भारत में अब इन सभी जरूरतों को आईएनएस ध्रुव के जरिए पूरा किया जाएगा।
क्या हैं आईएनएस ध्रुव की खासियत?
आईएनएस ध्रुव का डिजाइन विक सैंडविक डिजाइन की ओर से तैयार किया गया है। इसकी लंबाई 175 मीटर यानी दो फुटबॉल मैदानों के बराबर है, जबकि चौड़ाई 22 मीटर है। इस शिप पर एक समय में 300 नौसैनिक रह सकते हैं। इस ट्रैकिंग शिप की रफ्तार 21 नॉट्स (40 किमी प्रतिघंटा) तक जा सकती है। निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस शिप में 9000 किलोवॉट का डीजल इंजन भी लगा है। इसके अलावा इसमें 1200 किलोवॉट के दो ऑक्सीलरी जेनरेटर भी लगे हैं।
किस तकनीक पर बना है आईएनएस ध्रुव का रडार ट्रैकिंग सिस्टम?
आईएनएस ध्रुव ट्रैकिंग और सर्विलांस शिप की सबसे बड़ी ताकत है इसका रडार सिस्टम, जो कि दो हजार किमी दूरी से लॉन्च होने वाली बैलिस्टिक मिसाइल को भी ट्रैक कर सकता है। रिपोर्ट्स की मानें तो इस शिप में एक्स-बैंड एईएसए और एस-बैंड एईएसए (X-Band AESA Radar और S-Band AESA Radar) लगाए गए हैं। इन्हें भारतीय नौसेना ने राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संस्थान (एनटीआरओ) और डीआरडीओ ने विकसित किया है।

इस ट्रैकिंग शिप में लगा रडार लगातार 360 डिग्री तक घूम कर मिसाइल और एयरक्राफ्ट की ट्रैकिंग कर सकता है। इस रडार की खासियत है कि यह एक रडार न होकर कई रडार का समूह है। यानी जहां एक रडार से एक समय में एक ही चीज को ट्रैक किया जा सकता है, वहीं आईएनएस ध्रुव में लगे रडार से एक ही बार में कई टारगेट को निशाना बनाया जा सकता है। बताया जाता है कि ये रडार एक बार में 10 टारगेट को लॉक कर निशाना बना सकता है।
बैलिस्टिक मिसाइल के खतरे से कैसे बचाएगा आईएनएस ध्रुव?
बैलिस्टिक उन मिसाइलों को कहा जाता है, जो बैलिस्टिक मार्ग (पैराबोला) अपनाती हैं। यानी जमीन या किसी वाहन से लॉन्च होने के बाद ये मिसाइलें आसमान में काफी ऊंचाई तक जाती हैं और फिर दुश्मन के ठिकाने को तबाह करती हैं। आईएनएस ध्रुव का रडार ट्रैकिंग सिस्टम यहीं पर सबसे ज्यादा काम आता है। यह मुख्यतः कुछ चरणों में काम करेगा…
आईएनएस ध्रुव का काम समुद्री क्षेत्र के ऊपर से दुश्मन की बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च होते ही शुरू हो जाएगा। सबसे पहले दुश्मन पर नजर रख रहे सैटेलाइट ही लॉन्च हुई मिसाइल का पता लगा लेंगे।
हालांकि, मिसाइल की गति, उसकी दूरी और उसकी दिशा की पूरी जानकारी इस ट्रैकिंग शिप के जरिए ही पता चलेगी। आईएनएस ध्रुव पर लगा रडार सिस्टम इसका पता लगाएगा।
इसके बाद यह पूरी जानकारी आगे किसी और पोत या जमीन पर लगे एयर डिफेंस सिस्टम पर भेजी जाएगी जो कि हमले के लिए आ रही बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट करने के लिए तैयार रहेगा।

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Chhattisgarh News Dhamaka Team

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