कोण्डागांव, जिले के विकासखण्ड बड़ेराजपुर के ओडकापारा निवासी कृषक ‘जोहारलाल नेताम‘ भी उन जैसे हजारों किसानों में थे जिनकी कृषि भूमि पर वर्ष में एक बार मानसुनी सीजन के दौरान फसल लहलहाती थी । सीजन के बाद बाकी के महीने खेत उजाड़ वीरान मैदान में तब्दील हो जाते थे कारण स्पष्ट था। वर्षा के बाद के महीनों में फसल के लिए सबसे जरूरी घटक सिचाई की सुविधा का ना हो पाना था। हालकि दूर्गम पहाड़ियों से फूट निकलने वाले छोटे बडे़ नदी नाले वर्षा के दिनों में तो वेग जलधारा से प्रवाहित हो कर मुख्य नदियों में समाहित होते है परंतु महीनों में उनका स्वरूप बदल कर क्षीण डबरी में परिवर्तित हो कर रह जाता है। इसके साथ ही जल स्तर निम्नतम स्तर में पहुंचने के परिणाम स्वरूप सिचाई की आषा विलुप्त होने से एक किसान के लिए द्वि फसली की अवधारणा हमेषा ही बेमानी रही है।
नरवा विकास योजना का आधार सुखे नालों में रहेगा जल अपार-नरवा विकास योजना से किसानों में एक नई उम्मीद जगी और उनका दो से तीन फसल लेने का सपना साकार हो रहा है। पिछले ढाई सालों में राज्य ष्षासन ने नरवा विकास योजना के तहत् प्राकृतिक नालों को पुर्नजीवित करने का अनुठा एवं सफल प्रयोग किया है। इसके अंतर्गत प्राकृतिक नालों के उद्गम से लेकर अंतिम छोर तक अपवाह क्षेत्र को जगह-जगह रोक कर विभिन्न प्रकार की जल संरक्षण संरचना जैसे लुसबोल्डर चेक, गेबियन संरचना, कंटुर बोल्डर वाल, डाइक, चेक डेम, स्टाप डेम निर्माण का भगीरथ प्रयास किया गया है और इसके बेहद उत्साह जनक परिणाम भी आ रहे है। इनसे ना केवल भूगर्भिक जल को रिर्चाज करने में मद्द मिली वही वर्षा के तेज बहाव से मिट्टी कटाव से होने वाले भूमि क्षरण को रोकने और सिचाई के लिए बोर कुएं एवं तालाबों में बारह् मासी जल उपलब्धता भी सूनिष्चित हुई।
दो फसल लेने से हर्षित है जोहारलाल-अपने भविष्य के प्रति आषान्वित जोहारलाल की मुस्कान बताती है कि उसके खेत के समीप बुधाराव नाला में बोल्डर चेक डेम के निर्माण के उपरांत उसके खेतों का काया कल्प हो गया। अपने अतीत के बारे में उनका कहना था कि वह हमेषा ही दो फसल लेने के लिए प्रयास रत था परंतु उसकी खेती के लिए सबसे बड़ी समस्या सिचाई सुविधा की थी क्योंकिं वर्ष तक तो नाले में पानी रहता था परंतु इसके बाद नाले का जल स्तर बेहद कम हो जाता था और इस प्रकार सिचाई के अभाव में वर्ष के बाकी महीनों में खेतों एवं बाड़ियों का कोई उपयोग ही नही था परंतु चेक डेम बनने के उपरांत अब तो परे वर्ष खेत में काम ही काम रहता है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले के वर्षाें में वे सिमित रूप से मक्का की खेती करते थे जहां उन्हें 15 से 20 हजार रूपयें की आमदनी ही होती थी । परंतु अब चेक डेम बनने के बाद खरीफ फसल के रूप में धान उत्पादन के पश्चात दुसरी फसल के रूप में इस वर्ष उन्होंने अपनी सात एकड़ की भूमि में मक्का और गेंहू की फसल लगाया जिससे उन्हें 80 से 90 हजार रूपये से अधिक का लाभ हुआ और साथ ही वे बची हुई भूमि में शाक सब्जिया भी उगा रहें है। वे मानते है कि यह सब सुखद बदलाव नरवा विकास योजना की बदौलत है। इसके अलावा उनके जैसे अन्य कृषक भी अब सिचाई सुविधा बढ़ने से दो से तीन फसल लेने के लिए उत्सुक है। उनका यह भी कहना था कि इस नाले में और भी दो से तीन चेक डेम बनाने की आवश्यकता है ताकि गांव के अधिक से अधिक किसान इसका लाभ ले सके। गौरतलब है कि विगत् 20 जुन को मुख्यमंत्री के वर्चुअल कार्यक्रम मंे स्वयं मुख्यमंत्री ने उक्त किसान से रूबरू हो कर नरवा विकास योजना को ले कर उसकी हौसला अफजाई की थी। अंचलों के दूर्गम वन क्षेत्रों में प्रवाहित जल संसाधनों के संरक्षण सवर्धन में निष्चय ही नरवा विकास कार्यक्रम एक क्रांतिकारी कदम कहा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा लाभ उन किसानों को हुआ है जो वर्षा के बाद दुसरी फसल लेने में असमर्थ थे। इसके अलावा जल स्रोत के बढ़ने से मौसम में भी गांव के आस पास कुएं तालाबों में पर्याप्त जल भण्डारण से पेयजल एवं निस्तारी की समस्या का भी निवारण हुआ है।