कोण्डागांव के षामपुर सेक्टर से एक ऐसा उदाहरण सामने आया है जिसमें एक अत्यंत कुपोषित बच्ची की जान विभागीय अधिकारी कर्मचारियों की तत्परता से बचायी गयी। जागरूकता का ऐसा अभाव कि इस एक साल की महज सवा किलो की बच्ची की मां आंगनवाडी कार्यकर्ता की सलाह सुन कर ही मरणासन्न बच्ची को लेकर बिना किसी को बताये अपने मायके चली गयी। इस पर विभाग के उच्चाधिकारियों ने महिला के मायके का पता निकाल कर तुरंत महिला और बच्ची तक पहुंचकर वहीं से ही परियोजना अधिकारी के वाहन द्वारा तत्काल जिला मुख्यालय के पोषण पुनर्वास केन्द्र में भर्ती कराया। जहां विषेष पोषण आहार व दवाईयां दी गयी जिससे बेहद कमजोर बच्ची की जान बचायी जा सकी। दो बार रक्त भी चढाना पडा।
मामला षामपुर सेक्टर के करमरी गांव का – अति गंभीर कुपोषण से ग्रस्त नन्ही बच्ची को सामान्य स्तर में लाने का यह मामला कोण्डागांव के ग्राम शामपुर सेक्टर का है। शामपुर सेक्टर के अंतर्गत ग्राम करमरी के आंगनबाड़ी केन्द्र पखनाबेड़ा की कार्यकर्ता श्रीमती निर्मला मानिकपुरी ने इस संबंध में बताया कि उनके आंगनबाड़ी में रजिस्टर्ड ग्रामीण महिला लखमी बाई पति रोयदास की तीन वर्षीय नन्ही बच्ची ‘शांति यादव‘ का जब जन्म हुआ था, तब उसका वजन 02 किग्रा से उपर था।
जन्म के बाद हो गया वनज आधा – कुपोषण का ऐसा प्रहार कि 06 महीने के बाद उसकी मां के द्वारा बच्ची के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक न होने साथ ही ऊपरी आहार न देने के कारण धीरे-धीरे बच्ची कुपोषण के गर्त में जाने लगी और बच्चे का वजन 01 किलो 300 ग्राम हो गया जो अति गंभीर कुपोषण की श्रेणी में आता है। इस पर कार्यकर्ता द्वारा उसे बार-बार विकासखण्ड माकड़ी के पोषण पुनर्वास केन्द्र जाने की सलाह दी गई। परन्तु निर्धन मां-बाप द्वारा अपनी अज्ञानतावश कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा था।
विभाग की सुझबूझ से बच्ची की जान बची – इसी बीच सेक्टर की पर्यवेक्षिका श्रीमती बेलारानी विश्वास द्वारा उक्त आंगनबाड़ी के केन्द्र का निरीक्षण किया गया। उस वक्त मां लक्ष्मी भी अपनी बच्ची के साथ आंगनबाड़ी केन्द्र में उपस्थित थी। कृषकाय मां और उससे अधिक उसकी कृषकाय गोद में बैठी बच्ची को देखकर पर्यवेक्षिका द्वारा उसे तुरंत एनआरसी केन्द्र जाने के लिये तैयार किया गया। परन्तु लक्ष्मी बाई एनआरसी जाना छोड़कर घबराहट में बिना किसी को बताये अपने मायके ग्राम बगेदा पलायन कर गई। चूंकि बच्ची की स्थिति दिनों दिन गंभीर हो रही थी, इसे देखते हुए सुपरवाईजर ने अपने वरिष्ठ कार्यालय को अवगत कराया और सेक्टर माकड़ी के सुपरवाईजर के साथ मिलकर उक्त महिला के रहवास की खोजबीन एवं गहन पूछताछ कर उसके मायके का पता लगाया गया।
एक साल की बच्ची को दोबार चढाना पडा रक्त – जहां ईलाज के दौरान कमजोर बच्ची को दो बार रक्त भी दिया गया। इस प्रकार एक-दो दिन बाद बच्ची ‘शांति‘ की स्थिति में क्रमशः सुधार आने लगा और दो हफ्ते के पश्चात् उसे वापस घर लाया गया। यहां पर भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती निर्मला मानिकपुरी द्वारा प्रतिदिन बच्ची के घर में जाकर स्वयं अपने समक्ष बच्ची को पौष्टिक आहार का सेवन कराने के साथ-साथ दवाईयां दी गई। इन मैदानी कर्मचारियों के प्रयासों से अंततः बच्ची अति गंभीर कुपोषण से सामान्य की स्थिति में पहुंच गई और इस संबंध सराहनीय बात यह रही कि परियोजना अधिकारी, सेक्टर पर्यवेक्षक एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा नियमित रूप से गृह भेंट कर नन्ही शांति को निगरानी में रखकर अतिरिक्त पोषण आहार एवं दवाई भी खिलाया गया।
योजना बनी कुपोषित बच्चों के लिए वरदान– मुख्यमंत्री बाल संदर्भ योजना उन ग्रामीण परिवारों के लिये वरदान साबित हो रही है। जिनके लिये कुपोषण उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है। इसके तहत् गंभीर कुपोषित बच्चों को कुपोषण के चक्र से बाहर लाकर कुपोषण की दर में कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें गंभीर कुपोषित एवं संकटग्रस्त बच्चों को चिकित्सकीय परिक्षण की सुविधा, औषधियां तथा आवश्यकतानुसार बालरोग विशेषज्ञों की परामर्श की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
अधिकांष मामले दूरस्थ गांवों के – इन कुपोषित बच्चों में अधिकांश आदिवासी और दूरस्थ वनांचलों के हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने वृहद मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूवात की है और इसके सकारात्मक परिणामों से आने वाले वर्षों में यह उम्मीद है कि हम कुपोषण के विरूद्ध प्रभावी तरीके से एक बड़ी जीत हासिल कर सकेंगे।