रायपुर न्यूज़ धमाका /// दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के समय तेज रफ्तार कार की चपेट में आने से एक युवक की मौत हो गई जबकि चार गंभीर घायलों का उपचार जारी है।हालाँकि इस हादसे में कुल सत्रह लोग चोटिल हुए थे।भयावह हादसे के बाद नाराज भीड़ ने कार सवार दोनों युवकों की पिटाई भी की साथ ही कार में आग लगा कर उसे भस्मीभूत कर दिया। इस मामले में राजनीति अपने चरम पर चली गई। प्रदेश के भीतर से तो सरकार की आलोचना के स्वर आए ही, प्रदेश के बाहर से भी सरकार पर सलाहियत बरसीं जिसे ज़ाहिर है कांग्रेस ने तंज के रूप में लिया।देर रात राज्य सरकार ने मृतक गौरव अग्रवाल के परिजनों को पचास लाख मुआवजे का ऐलान किया है, लेकिन मामले को लेकर पत्थलगांव थाने में दर्ज एफआईआर नंबर 231/2021 में जो धाराओं का उपयोग किया गया है,
पत्थलगांव पुलिस ने मामले में धारा 302,304 और 34 लगाते हुए बबलू विश्वकर्मा और शिशुपाल साहू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। इस हिट एंड रन केस में धारा 302 के उपयोग से ही सवाल खड़े हो गए हैं। धारा 302 तब आकर्षित होती है जबकि हत्या का मसला हो, जबकि यह घटना हिट एंड रन केस की श्रेणी में आती है। धारा 302 का आशय है कि जब कोई हत्या आशय के साथ करे, याने कारण हो, इसलिए उसे सदोष मानव वध कहा जाता है। जबकि धारा 304 तब प्रभावी होती है जबकि यह जानते हुए बिना आशय का वह कार्य किया जाए जिससे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है,धारा 304 को मानव वध में प्रयुक्त किया जाता है। इस मामले में पुलिस ने दो प्रतिकूल परिस्थितियों में लागू होने वाली अलग अलग धाराओं को एक ही प्रकरण में एक ही मृत्यु के मसले पर लागू कर दिया है। ज़ाहिर है इससे अदालत में पुलिस को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
पुलिस ने एफआईआर क्रमांक 231/2021 में जिस गौरव की मौत को दर्ज किया है, उसमें एक धारा गौरव की मौत को सदोष मानव वध बताती है, जबकि दूसरी में केवल मानव वध का मसला बनता है। धारा 302 में आजीवन कारावास की सजा है या फिर फांसी की सजा, लेकिन धारा 304 में आजीवन कारावास की सजा है पर वह घटते हुए दस साल की सजा पर भी टिक जाती है। धारा 302 में पुलिस यह कैसे साबित करेगी कि, यदि मामला हत्या का था तो मृतक की हत्या के पीछे आरोपियों के पास कौन सा कारण था ? एक ही मौत पर एक ही एफआईआर में दो अलग अलग प्रकृति की धाराएँ कैसे प्रभावी होंगी ? कोर्ट में पुलिस को असहज स्थिति का सामना करना पड़ेगा।उसने सवाल खड़े कर दिए हैं। विधिवेत्ताओं ने इस मामले में दर्ज एफआईआर में लगाई गई धाराओं को लेकर आश्चर्य जताया है, और उनका यह मानना है कि ऐसी स्थिति में यह मान पाना कठिन है कि पुलिस की केस डायरी अदालत में टिक पाएगी।