
बिलासपुर न्यूज धमाका – छत्तीसगढ़ हाई काेर्ट के स्थापना में काम करने वाले 15 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने पदोन्नति के लिए किए गए संशोधन नियमों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और ला सिकरेट्री को प्रमुख पक्षकार बनाया था। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया है।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि किसी भी मामले में कोर्ट, न्यायिक समीक्षा की आड़ में, नियुक्ति प्राधिकारी की कुर्सी पर बैठकर यह निर्णय नहीं ले सकता कि नियोक्ता के लिए क्या उचित है। विज्ञापन या अधिसूचना की शर्तों की व्याख्या उसकी स्पष्ट भाषा के विपरीत नहीं कर सकता। डिवीजन बेंच ने यह भी लिखा है कि यह एक सुस्थापित कानून है कि यदि नियम, अधिसूचना या संशोधन आम आदमी की भलाई के लिए बनाए गए हैं, इससे किसी व्यक्ति को कठिनाई हो रही है, तो यह नियमों को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के स्थापना में पदस्थ भीमबलि यादव सहित 15 कर्मचारियों ने याचिका दायर कर रजिस्ट्रार जनरल द्वारा किए गए संशोधन को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने 2017 में अधिसूचित पदोन्नति नियम मानदंडों में संशोधन को रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने अर्जेंट हियरिंग के तहत याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा 24-02-2022 को जारी नोटिस को चुनौती दी थी। इसमें सहायक ग्रेड- III के 69 रिक्त पदों पर पदोन्नति के लिए लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षा 05.03.2022 को सुबह 11 बजे से सीएसजेए, बोदरी, बिलासपुर में आयोजित करने की जानकारी दी गई थी। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय सेवा (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और आचरण) नियम, 2017 (इसके बाद ‘नियम, 2017’) के क्रम संख्या 11, प्रथम अनुसूची, वर्ग- III में लाए गए संशोधन को चुनौती दी है। इसमें सहायक ग्रेड- III में पदोन्नति के लिए स्थापना के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति के मानदंड/मानदंडों को ग्रेड- III में पदोन्नति के प्रावधानों के विपरीत संशोधित किया गया है।
इन नियमों को दी चुनौती
09-01-2015 को वर्ष 2003 में पहली बार बनाए गए नियम अर्थात् छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय स्थापना (नियुक्ति और सेवा की शर्तें) नियम, 2003 (इसके बाद नियम, 2003) के साथ पठित राजपत्र अधिसूचना संख्या 5488/II-15-19/2002 दिनांक 10 दिसंबर 2003 के तहत लागू किया जाएगा। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उन सभी को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था और उनके अनुसार उन्होंने बिना किसी पदोन्नति के समान वेतन और पदों पर 15-20 वर्ष की सेवा की है। संबंधित सेवा नियम वर्ष 2003 में राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से तैयार और प्रकाशित किए गए थे। नए नियम अर्थात नियम, 2017 के निर्माण के बाद इसमें पुनः परिवर्तन किया गया है, जिसके तहत अर्हता प्राप्त करने के लिए अधिक कठोरता के साथ लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षण मानदंड का प्रावधान शामिल किया गया है।
वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति की मांग
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति के लिए विचार किया जा सकता है जैसा कि पहले माना जाता था। उनकी नियुक्ति के समय प्रचलित पुराने पदोन्नति नियम यानी नियम, 2003 को उनकी पदोन्नति के लिए विचार करने की मांग की थी।
नियमों में संशोधन के साथ पदों में भी कर दी कटौती
भर्ती व पदोन्नति नियम 2003 में निर्धारित किया गया है कि सहायक ग्रेड-III के 75% पद प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती द्वारा भरे जाएंगे और 25% पद योग्यता सह वरिष्ठता के आधार पर योग्य नियमित वर्ग-IV या आकस्मिक भुगतान वाले कर्मचारियों में से पदोन्नति द्वारा भरे जाएंगे, जिन्होंने संस्थान में न्यूनतम 2 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है और न्यूनतम योग्यता और अनुभव भी निर्धारित किया गया था। उक्त नियमों को 2015 में संशोधित किया गया और 75% को घटाकर 70% कर दिया गया और 25% को घटाकर 20% कर दिया गया।
पदोन्नति के साथ ही समयमान वेतनमान भी दिया गया
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ताओं ने डिवीजन बेंच को बताया कि कुछ याचिकाकर्ताओं को नियमों के अनुसार अपेक्षित सेवा पूरी करने के बाद समयमान वेतन दिया गया है और उनमें से कुछ को नियमों के अनुसार अगले पद पर पदोन्नत भी किया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी याचिकाकर्ता बिना किसी पदोन्नति के एक ही वेतन और पद पर 15 से 20 वर्ष से अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
पदोन्नति परीक्षा में हो गए पास,इसलिए 15 कर्मचारियों ने याचिका ले ली वापस
छत्तीसगढ़ हाई काेर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि वर्तमान याचिका 30 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा 24.2.2022 के नोटिस को चुनौती देते हुए दायर की गई थी और उसके बाद, सभी याचिकाकर्ताओं ने उक्त नोटिस के अनुसरण में 5.3.2022 को चयन प्रक्रिया में भाग लिया और उक्त प्रक्रिया में 15 कर्मचारियों को सफलता मिली और, इस प्रकार, उन्होंने अपने संबंध में रिट याचिका वापस ले ली।
चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाने की नहीं दी जा सकती अनुमति
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर चयन प्रक्रिया में भाग लिया था, इसलिए उन्हें चयन की विधि और उसके परिणाम पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नियमों में समय-समय पर आवश्यकता को देखते हुए संशोधन भी किए गए हैं। याचिकाकर्ताओं द्वारा संशोधित मानदंडों को रद्द करने के लिए कोई उचित आधार नहीं बनाया गया है। नियम, 2017 के अंतर्गत की गई पदोन्नति के संबंध में कोई तर्क नहीं दिया गया है और पूरी याचिका में इस आशय का कोई आधार नहीं बनाया गया है या नहीं उठाया गया है कि संशोधन भारत के संविधान के किसी भी प्रावधान के विरुद्ध है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ रिट याचिका को खारिज कर दिया है।