कवर्धा न्यूज़ धमाका /// प्रदेश में आदिवासी जनजाति बैगा समुदाय के विकास व उत्थान के लिए शासन कई बड़ी योजनाएं संचालित कर रही है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वनांचल में आवासीय विद्यालय भी स्थापित किए गए हैं, ताकि बच्चे पढ़ लिखकर अपना भविष्य बना सकें।
लेकिन कवर्धा जिले के अंतिम छोर पर बसे घोर नक्सल प्रभवित गांव लरबक्की के आदिवासी कन्या आश्रम की तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है, यहां पढ़ने वाली मासूम बच्चियों के हाथों में कापी-किताब नहीं बल्कि पानी भरे बड़े बड़े बर्तन नजर आ रहे हैं।
इतना ही नहीं अधीक्षिका भी आश्रम से नदारद रहती हैं। आश्रम के द्वार पर होम गॉर्ड की तैनाती भी नहीं है। ऐसे में इन मासूम बैगा बच्चियों का भविष्य किस ओर जा रहा है आप अंदाजा लगा सकते हैं।
कवर्धा जिले का एक बड़ा हिस्सा सघन वनों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। ऐसे अंचल में विशेष पिछड़ी जाति बैगा आदिवासी लोग निवासरत हैं। इन क्षेत्रों में शिक्षा भगवान भरोसे पर चल रही है। आदिवासी व बैगा जनजाति के बच्चों के लिए आश्रम व हॉस्टल तो खोले गए हैं लेकिन जिसकी भरोसे छोटे-छोटे बच्चों को पालक छोड़कर जाते हैं वे जिम्मेदार हॉस्टल से नदारद रहते हैं। जिले के ज्यादातर हॉस्टल्स का यही हाल है।
जिले में 100 हॉस्टल व आश्रम हैं। ताकि वनांचल के पिछड़े हुए आदिवासी बैगा जनजाति के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल पाए। इसी उम्मीद में पालक भी अपने बच्चों को हॉस्टल में छोड़कर जाते हैं। पर यहाँ हॉस्टल की स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है। ग्राम लरबक्की के आदिवासी कन्या आश्रम का भी यही हाल देखने को मिला। जहा छोटे छोटे बच्चों से हॉस्टल के लिए पानी भरवाते नजर आए। जबकि हॉस्टल में चौकीदार व रसोइया भी है।
उनके रहते बच्चों से काम कराया जा रहा है। यही नहीं हॉस्टल की अधीक्षका भी आए दिन नदारद रहती है। जब बच्चों से पूछा गया तो पता चला कि हॉस्टल का बोर सप्ताह भर से खराब है। ऐसे में इन नन्हीं बच्चियों को गांव के अंदर जाकर पीने का पानी लाना पड़ रहा है। सुदूर वनांचल गांव होने के कारण ज्यादातर अधिकारी इन क्षेत्रों में जांच करने कभी नहीं जाते। यही कारण है कि हॉस्टल व आश्रम चौकीदार रसोइया के भरोसे छोड़कर अधीक्षिका नदारद रहती हैं।
लरबक्की घोर नक्सल प्रभावित गांव है। तीन किलोमीटर दूर जंगल में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ भी हुआ था, इसके बावजूद आश्रम में होम गॉर्ड की तैनाती नहीं की गई है, जिससे बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं जब आदिम जाति विकास विभाग के आयुक्त से इस बारे में जानकारी मांगी गई तो वे जांच और कार्यवाही का दावा कर पल्ला झाड़ रहे हैं।
भले ही अधिकारी जांच व कार्यवही का दावा रहे रहें हों पर जिले के ज्यादातर हॉस्टल व आश्रमों का यही हाल है। ऐसे में बच्चे अपना भविष्य कैसे गढ़ पाएंगे। अब देखने वाली बात यह है कि जिम्मेदार अधिकारी इस आश्रम के संचालक पर कोई एक्शन लेते हैं या हमेशा की तरह अफसरों का दावा कोरा ही साबित होता है।
न्यूज़ सौजन्य हरिभूमि