जिले के सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे ग्रामों में अतिवाद के पनपने से यह क्षेत्र वर्षों से विकास की मुख्यधारा से अलग रहे हैं। ऐसे में यहां अशिक्षा, पिछड़ेपन की वजह से कई प्रकार की समस्याओं ने जन्म लिया है। जिसमें कुपोषण एक मुख्य समस्या बनकर उभरी है। कुपोषण से इन क्षेत्रों में युवाओं का एक वर्ग ऐसा उभरा जिसकी बचपन से ही कार्यक्षमता अन्य सामान्य बच्चों से कम हो जाती है। चूंकि बच्चे किसी भी समाज के विकास के आधार स्तम्भ होते हैं ये आधार स्तम्भ खोखला रह जाता है। जिसपर विकसित समाज को अपने पैरों पर खड़ा नहीं किया जा सकता। ऐसे में कुछ कर्तव्य परायण शासकीय मैदानी कर्मचारियों द्वारा अपनी पूर्ण कार्यक्षमता से बच्चों को कुपोषण के कुचक्र से निकालने के लिये लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। इसी का उदाहरण कोण्डागांव विकासखण्ड के अतिसंवेदनशील ग्राम कड़ेनार के चिकपाल में स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र की कार्यकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है।
कोरोना काल में भी देती रहीं सेवाएं-अबूझमाड़ से सटे धुर नक्सल प्रभावित ग्राम कडेनार के चिकपाल पारा में वर्ष 2009 में आंगनबाड़ी केंद्र की स्थापना के बाद से कार्यरत् आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ‘रजबती बघेल‘ पूर्ण निष्ठा के साथ इन संवेदनशील ग्रामों में बच्चों को सुपोषित करने का प्रयास कर रहीं हैं। कोरोना की प्रथम लहर के दौरान बच्चों में सुपोषण स्तर बनाये रखने के लिये सूखे राशन का वितरण करते हुए लगातार ‘चकमक‘ एवं ‘सजग‘ कार्यक्रम के क्रियान्वयन के द्वारा बच्चों को पढ़ाई से भी जोड़े रखने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही जिले में सुपोषण अभियान के अंतर्गत चलाये जा रहे ‘नंगत पिला‘ कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये कोरोना की द्वितीय लहर के दौरान जब लोग घरों से निकलने में कतरा रहे थे। ऐसी स्थिति में भी कार्यकर्ता ‘रजबती बघेल‘ द्वारा घर-घर जाकर बच्चों के वजन एवं ऊंचाई का मापन कर कुपोषण की जांच का कार्य पूर्ण निष्ठा से किया गया।
विगत दिनों ‘नंगत पिला‘ कार्यक्रम के अंतर्गत कलेक्टर पुष्पेन्द्र कुमार मीणा के निर्देश पर कुपोषित बच्चों को सप्ताह में तीन बार अण्डा वितरण एवं कोदो खिचड़ी खिलाने के निर्देश दिये गये थे। जिसे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण मानते हुए रजबती ने अपने निकटतम 24 किमी की दूरी पर स्थित क्लस्टर केन्द्र मर्दापाल से अण्डा लाने का निर्णय किया। वर्षा ऋतु में कच्चे रास्तों पर वाहनों के आवागमन की मुश्किलों, पहुंच मार्ग के अभाव में कड़ेनार पहुंचने जंगलों एवं पहाड़ों के बीच नदी नाले से होकर गुजरने वाले रास्तों से होकर सायकिल में अंडा लेकर जाने से फूटने की संभावना को देखते हुए रजबती प्रति दो सप्ताह में पैदल सर पर अण्डों की टोकरी रखकर 24 किमी का सफर तय करती हैं। इन अण्डों को आंगनबाड़ी केन्द्र में पंजीकृत 30 बच्चों में से मध्यम कुपोषित 07 बच्चों को प्रति सप्ताह तीन बार खिलाती हैं। इसके लिये 24 किमी दूर मर्दापाल केन्द्र से 42 अण्डे कैरेट के साथ टोकरी में रखकर कच्चे कीचड़ से भरे रास्तों को पैदल पार करती हैं। इस आंगनबाड़ी केन्द्र के माध्यम से एक गर्भवती एवं दो धात्री माताओं का भी ध्यान रखा जाता है।
कलेक्टर एवं आईजी ने की थी कार्यों की प्रशंसा-रजबती बघेल‘ के कार्यों के संबंध में अपने बेचा दौरे के समय आईजी सुंदराजन पी एवं कलेक्टर पुष्पेन्द्र कुमार मीणा को जानकारी प्राप्त होने पर उन्होंने रजबती से मिलकर उनके द्वारा क्षेत्र के बच्चों के लिये किये जा रहे कार्यों की सराहना की थी।