
कोंडागांव,न्यूज़ धमाका :- किसानों के उत्पादों के लिए लाभकारी “न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी कानून” की दशकों पुरानी मांग को लेकर देश के सबसे पिछड़े क्षेत्र बस्तर के आदिवासी किसान भी अब लामबंद होने लगे हैं। कोंडागांव तथा बस्तर जिले के किसानों में न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी की आवश्यकता अनिवार्यता के विषय पर बड़ी बड़ी बैठकें की जा रही हैं। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इन बैठकों में बड़ी संख्या में अंचल आदिवासी किसान सम्मिलित भी हो रहे हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी हेतु दिल्ली में 223 प्रमुख किसान संगठनों के द्वारा अपनी एकसूत्रीय मांग को लेकर तैयार किए गए “एमएसपी गारंटी-किसान मोर्चा” देश के वरिष्ठ किसान नेता तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह की अध्यक्षता में इन दिनों पूरे देश में एमएसपी को लेकर किसानों में जबरदस्त जमीनी जागरूकता अभियान चला रहा है। एमएसपी गारंटी मोर्चे का नारा “गांव-गांव एमएसपी- घर-घर एमएसपी” तथा “फसल हमारी दाम तुम्हारा- अब नहीं चलेगा नहीं चलेगा” धीरे-धीरे देश देश के हर गांव में सुलगने लगा है।
इस मोर्चे द्वारा रायपुर में एक कृषक महा-सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमेंदेश के वरिष्ठ किसान नेता तथा मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह ,मोर्चे के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ राजाराम त्रिपाठी तथा वरिष्ठ किसान नेता राजू शेट्टी की उपस्थिति में प्रदेश के लगभग 25 अग्रणी सक्रिय किसान संगठनों ने भाग लिया था तथा सभी ने एकजुट होकर मोर्चे के एकल सूत्रीय मिशन “हर फसल के लिए एमएसपी-हर किसान के लिए एमएसपी” को गांव-गांव तक, हर किसान तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया।
इसी तारतम्य में 2022 के अंतिम सप्ताह बड़ी संख्या में कोंडागांव तथा जगदलपुर जिले के प्रगतिशील किसानों ने कोंडागांव में एमएसपी मोर्चे के आवाहन पर कई बैठकें आयोजित की। बीते रविवार को आयोजित स्थानीय किसानों की कोंडागांव में एक बड़ी बैठक संपन्न हुई।अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ राजाराम त्रिपाठी इस बैठक के प्रमुख वक्ता थे। अध्यक्षता समाजसेवी तथा पूर्व जनपद अध्यक्ष एवं प्रगतिशील किसान जानो बाई ने की। उन्होंने सर्वप्रथम कहा कि लीजिए 2022 भी खत्म हो गया लेकिन सरकार द्वारा 2022 देश के किसानों की आय दोगुनी करने का वादा पूरी तरह से झूठा और जुमला मात्र साबित हुआ है।
अगर सरकारें ही अपने देश के अन्नदाता किसानों से धोखा करेंगी तो भला देश के किसानों को न्याय कहां और कैसे मिलेगा? आगे डॉ त्रिपाठी ने विस्तार से समझाया कि आज के हालातों में “एमएसपी की गारंटी” किसानों के लिए जीवनदायिनी प्राणवायु क्यों और कैसे बन गई । उन्होंने कहा कि किसानों के उत्पादों को उनका वाजिब ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ भी नहीं मिल पाने के कारण देश के किसानों का लगभग 7 लाख करोड़ का हर साल नुकसान हो रहा है बदले में सरकार हम किसानों को छोटी मोटी सहायताएं,अनुदान, कर्जा माफी आदि का लालीपाप देकर हमें उस फुसलाने में कामयाब होती रही है।
सरकार अगर हमें हमारे उत्पादों का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए एक सक्षम कानून ले आती है तो किसानों को ऐसे कृषि अनुदान और कर्जा माफी की आगे कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, हर किसान अपने खून पसीने की कमाई का उचित मूल्य पाकर वैसे ही समृद्ध हो जाएगा। इतिहास में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था तो हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसे सोने की चिड़िया इस देश के किसानों ने ही बनाया था।
अगर देश के किसानों को उनके उत्पादों का लाभकारी मूल्य मिलने की गारंटी सक्षम कानून से मिल जाएगा तो यही देश किसानों के पसीने और मेहनत के दम पर कुछ वर्षों में ही फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगा। डॉक्टर त्रिपाठी ने बैठक में अपना नया नारा “एमएस गारंटी नहीं तो वोट नहीं” देते हुए कहा कि हमारा यह मोर्चा पूरी तरह से गैर-राजनैतिक है लेकिन इस देश में 70 प्रतिशत जनसंख्या या तो किसान परिवारों की है अथवा खेती से परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से जुड़ी हुई है।
इसलिए हमारे वोटों से सरकार बनाने वाली इन राजनीतिक पार्टियों और इनकी सरकारों के नुमाइंदों को अब यह भली-भांति समझ लेना चाहिए, कि देश के किसानों ने अब ठान लिया है कि “किसानों का वोट और सपोर्ट” अब उसे ही मिलेगा जो किसानों को उनके उत्पादों के लाभकारी समर्थन मूल्य की गारंटी कानून के जरिए दिलाएगा।
किसानों की सभा को जानो बाई मरकाम भूपू. जनपद अध्यक्ष, पटेल लच्छू राम जी, प्रगतिशील किसान संतु राम, पूरन सिंह सोरी आदि ने भी संबोधित किया। सभा में सम्मिलित विभिन्न गांवों के प्रगतिशील किसानों ने अपने अपने गांवों में भी इस मुद्दे को लेकर लगातार बैठकें आयोजित करने की ठानी है।
उन्होंने डॉ. त्रिपाठी से अनुरोध किया है कि कृपया यथासंभव वो भी इन गांव की बैठकों में सम्मिलित होने के लिए पधारने का कष्ट करें, तथा इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सभी किसानों को जागरूक करने और मोर्चे के लक्ष्य से जोड़ने में मदद करें। त्रिपाठी ने कहा कि नए साल की शुरुआत के 2 हफ्ते वह दक्षिण भारत में इस मुद्दे पर लेकर वहां के किसानों की बैठक लेंगे।
द्वितीय सप्ताह के बाद इस अंचल के किसान भी खेती तथा खलिहान के कार्यों से कुछ फुर्सत पा जाएंगे अतएव यह समय इस कार्य के लिए उपयुक्त रहेगा। यह तय है कि आने वाले दिनों में ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ गारंटी का मुद्दा और अधिक गरमाने वाला है और किसान अपनी इस दशकों पुरानी लंबित मांग को पूरा कराए बिना अब नहीं मानने वाले।