सुकमा न्यूज़ धमाका /// भाकपा लीडर व नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडिया की जनरल सेकेट्री एनी राजा जिले के प्रवास पर पहुंची उन्होंने स्थानीय विश्राम गृह में पत्रकारों से चर्चा करते हुए राज्य व स्थानीय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाये। एनी राजा ने कहा कि इस जिले में न रोजगार का मतलब पता है न ही मॉडल स्कूलों का। गरीबों के लिए लाया गया कानून मनरेगा यहां मजाक बना हुआ है। छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों के साथ साथ सुकमा जिले में तो यह योजना सरकारी कम और ठेकेदारी ज्यादा लगने लगी है।
एनी राजा ने सुकमा प्रवास के दौरान पत्रकारों से चर्चा करते हुए कई बातें कही जिनमे प्रमुख रूप से मनरेगा का ही ज़िक्र था, वार्ता के दौरान उन्हों कहा, गरीब तबके को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लाई गई मनरेगा योजना का छत्तीसगढ़ में किस तरह से मखौल उड़ाया जा रहा हैं। इसकी बानगी आंकड़ों को देखकर लगाई जा सकती है।
गरीबों को रोजगार मिले ताकि वो सम्मानपूर्वक जिंदगी जी सके, इसलिए मनरेगा योजना बनाई गई। जिसमें हमारी पार्टी का भी बड़ा योगदान रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ में उस योजना का बुरा हाल है। यहां लोगों को रोजगार नही मिल रहा है जिनको रोजगार मिल रहा है उन्हें समय पर मजदूरी नही मिल रही है, जबकि हर दिन भुगतान का नियम है।
भाकपा नेता एन राजा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अच्छी बात है कि वे दूसरे प्रदेश में जाकर खुद के पार्टी व सरकार का प्रचार प्रसार कर रहे है। लेकिन खुद के प्रदेश को भी समय दे और मनरेगा व शिक्षा विभाग की भी मॉनिटरिंग करें। मुख्यमंत्री अन्य राज्यों में जाकर कांग्रेस को मजबूत कर रहे है ये अच्छी बात है। लेकिन प्रदेश में भी समय दे और योजनाओं में सुधार लाए। शुरूआती दिनों में मनरेगा योजना हर राज्यों में गड़बड़ी थी। लेकिन समय के साथ उन राज्यों में सुधार हो गया, लेकिन छत्तीसगढ़ में योजना का बुरा हाल है।
एनी राजा ने कहा कि सुकमा जिले में हमारी टीम ने मनरेगा कार्यों का निरीक्षण किया और सरपंच के साथ मजदूरों से चर्चा की। जिसमें पता चला कि यहां दो साल से मजदूरी भुगतान नही हुआ है। जबकि नियम में है कि हर दिन मनरेगा का भुगतान होना है। अगर हर दिन नही होता तो सप्ताह या 15 दिवस में भुगतान होना चाहिए। लेकिन ऐसा नही हो रहा, साथ ही बेरोजगारी भत्ता भी नही दिया जा रहा है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल सिर्फ 7 फीसदी परिवारों को ही रोजगार मिला है। साथ ही यहां पर मनरेगा में ठेकेदारी प्रथा ज्यादा है जो कि प्रावधान में है ही नहीं। साथ ही यहां पर भुगतान में देरी हो रही है जिसके पीछे यह कारण है कि प्रदेश सरकार द्वारा जो एफटीपी एक सप्ताह में होना चाहिए, उसमें 15 दिन से ज्यादा समय लग रहा है। वही हाल केंद्र सरकार का भी है।
साथ ही छत्तीसगढ़ में 20 फीसदी भुगतान रिजेक्ट हो जाता है, जबकि केरल में 3 फीसदी रिजेक्ट होता है और देश में नंबर एक पर छत्तीसगढ़ है और दूसरे पर केरल लेकिन दोनों में अंतर काफी है। भुगतान रिजेक्ट के पीछे डेबिट व क्रेडिट फेलियर बताया जा रहा है।